समाज में सुंदरता और शरीर के आकार को लेकर एक असमर्थ और भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण हमेशा से रहा है। यह दृष्टिकोण हर व्यक्ति को प्रभावित करता है, चाहे वह मोटा हो या पतला। जहाँ एक ओर मोटे लोगों को शारीरिक वजन और आकार के कारण ताने सुनने पड़ते हैं, वहीं पतले लोग भी इस भेदभाव से बच नहीं पाते। ऐसा लगता है कि समाज को किसी भी आकार में संतुष्टि नहीं है। यह असहमति और द्वंद्व क्यों है, और इस समाज से अपेक्षाएँ आखिर क्या हैं, यह सवाल है जिसका जवाब शायद हम कभी नहीं पा सकेंगे।
मोटे लोगों को ताने और आलोचनाएँ
मोटे लोगों को हमेशा शारीरिक रूप से आलोचना का सामना करना पड़ता है। समाज में वजन कम करने के लिए न केवल दबाव डाला जाता है, बल्कि उन्हें “आलसी”, “स्वास्थ्य के लिए खतरा”, “सुंदर नहीं” जैसे तानों का भी सामना करना पड़ता है। यह मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है और आत्मविश्वास को कम करता है। मोटे होने का मतलब यह नहीं है कि किसी व्यक्ति की मेहनत कम है या वह कम स्वस्थ है। एक व्यक्ति का आकार उसके आहार, जीवनशैली और जीन पर निर्भर करता है, जो हर किसी के लिए अलग-अलग हो सकता है। लेकिन समाज इस विविधता को समझने के बजाय हर किसी को एक ही मापदंड पर परखता है।
पतले लोगों के साथ भेदभाव
मगर, समाज केवल मोटे लोगों के खिलाफ नहीं है, पतले लोगों को भी ताने सुनने पड़ते हैं। “कमजोर”, “आलसी”, “खाना नहीं खाते” जैसी टिप्पणियाँ अक्सर पतले लोगों के लिए होती हैं। इन तानों से यह संदेश जाता है कि एक व्यक्ति को न केवल अधिक वजन, बल्कि अधिक मांसपेशियाँ भी चाहिए। पतला होना भी समाज में अनदेखा और आलोचना का कारण बनता है। यह दर्शाता है कि केवल एक आदर्श शरीर का आकार समाज द्वारा स्वीकृत माना जाता है, जोकि खुद में एक समस्या है।
समाज की दुविधा
यह विडंबना है कि समाज में कोई भी आकार या आकार का शरीर आदर्श नहीं माना जाता। यदि कोई व्यक्ति मोटा है, तो उसे स्वास्थ्य और सुंदरता के बारे में ताने मिलते हैं, और अगर वह पतला है, तो उसे भी इसी तरह के ताने सुनने को मिलते हैं। यह दर्शाता है कि समाज के लिए कोई भी शरीर के आकार में संतुष्टि नहीं है। आदर्श शरीर का आकार, जो कभी स्थिर नहीं होता, केवल एक सामाजिक निर्माण है, जो हर व्यक्ति के लिए अलग होता है। अगर कोई व्यक्ति प्राकृतिक रूप से पतला या मोटा है, तो उसे खुद को स्वीकारने और समाज की आलोचनाओं को नकारने का अधिकार होना चाहिए।
समाज की मानसिकता पर सवाल
समाज की इस भेदभावपूर्ण मानसिकता के पीछे मुख्य कारण यह है कि यह केवल बाहरी रूप को महत्व देता है और आंतरिक गुणों की अनदेखी करता है। शरीर का आकार या वजन किसी व्यक्ति की क्षमता, प्रतिभा, या मूल्य को निर्धारित नहीं करता। फिर भी, क्यों हम बाहरी आकार को अहमियत देते हैं? क्या हमारे समाज का मूल उद्देश्य व्यक्तिगत भलाई और खुशहाली के बजाय किसी आदर्श शरीर के आकार को स्वीकार करना है?
निष्कर्ष
इस समाज को यह समझने की आवश्यकता है कि हर व्यक्ति का शरीर अलग है, और किसी के आकार के आधार पर उसे ताना देना या आलोचना करना गलत है। मोटे और पतले लोग दोनों को समान रूप से सम्मान मिलना चाहिए, क्योंकि शरीर का आकार किसी की सफलता, खुशी या मूल्य का निर्धारण नहीं करता। हमें समाज के इस दोहरे मापदंड को चुनौती देने की आवश्यकता है और यह समझने की आवश्यकता है कि हर आकार सुंदर है। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि “हम जैसे हैं, वैसे ही अद्भुत हैं।”
समाज को अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है, ताकि हर व्यक्ति अपनी शारीरिक स्थिति से परे जाकर अपनी पहचान और आत्म-मूल्यता को पहचान सके।