Wednesday, July 2, 2025
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मैं एक माँ हूँ और नहीं चाहती कि मेरा बच्चा सोशल मीडिया पर वीडियो बनाए!

आजकल सोशल मीडिया का प्रभाव हर किसी पर देखा जा सकता है, खासकर हमारे बच्चों पर। बच्चे अब सिर्फ अपनी पढ़ाई या खेलकूद में नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर फेमस होने के लिए भी समय बिताते हैं। मुझे यह देखकर बहुत दुख होता है कि आज के बच्चे अपनी मासूमियत और बचपन को खोते जा रहे हैं, क्योंकि वे यह समझने में विफल हैं कि सोशल मीडिया की दुनिया कितनी खतरनाक हो सकती है।

मैं एक माँ के रूप में चाहती हूं कि मेरा बच्चा अपने जीवन के इस अनमोल समय को वास्तविक और स्वस्थ तरीके से बिताए, न कि वीडियो बनाने, लाइक्स और फॉलोअर्स की दौड़ में। सोशल मीडिया पर अपनी पहचान बनाने का दबाव बच्चों पर इतना बढ़ गया है कि वे अपनी असली पहचान को खोकर एक नकली दुनिया में जीने लगते हैं।

सोशल मीडिया के प्रभाव

सोशल मीडिया का प्रभाव न केवल बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, बल्कि यह उनकी शारीरिक और भावनात्मक स्थिति को भी प्रभावित कर सकता है। जब बच्चे अपनी तस्वीरें और वीडियो शेयर करते हैं, तो वे अक्सर आलोचना और नकारात्मक टिप्पणियों का शिकार होते हैं। यह उन्हें आत्म-संवेदना और आत्म-मूल्य की कमी का अनुभव कराता है।

बचपन की मासूमियत खोना

बच्चों का बचपन यह अवसर प्रदान करता है कि वे खेलें, रचनात्मकता को बढ़ावा दें और अपनी कल्पना का इस्तेमाल करें। लेकिन सोशल मीडिया की चमक-दमक में कई बच्चे अपनी वास्तविक दुनिया से दूर हो जाते हैं और अपनी मासूमियत खो देते हैं। वे न चाहते हुए भी सोशल मीडिया की दुनिया में खुद को साबित करने के लिए वीडियो बनाते हैं, जिससे उनका ध्यान पढ़ाई, खेल और अन्य आवश्यक गतिविधियों से भटक जाता है।

क्या सोशल मीडिया बच्चों के लिए सुरक्षित है?

सोशल मीडिया पर बच्चों को सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बच्चों को किसी भी तरह की गोपनीयता या सुरक्षा की गारंटी नहीं मिलती। गलत व्यक्तियों के संपर्क में आने, मानसिक तनाव और अन्य खतरों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, मैं एक माँ के रूप में नहीं चाहती कि मेरा बच्चा इस दुनिया का हिस्सा बने, जहाँ उसे न केवल मानसिक तनाव का सामना करना पड़े, बल्कि उसकी पहचान और सुरक्षा भी खतरे में पड़ें।

माँ के रूप में मेरा दृष्टिकोण

मैं चाहती हूं कि मेरा बच्चा अपने बचपन का आनंद बिना किसी तनाव और दबाव के लें। उसे यह सीखने का समय चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत, न कि यह समझने का कि उसे कितने लाइक्स मिले या उसकी वीडियो कितनी बार शेयर की गई।

माँ होने के नाते, मेरा यह मानना है कि बच्चों को सोशल मीडिया से अधिक महत्वपूर्ण उनका शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास है। बच्चों को ऐसी दुनिया में बड़ा करना चाहिए, जहां वे स्वाभाविक रूप से अपनी प्रतिभाओं का विकास कर सकें, न कि सोशल मीडिया की चकाचौंध के बीच अपनी वास्तविकता को भूल जाएं।

निष्कर्ष

समाज में सोशल मीडिया की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद, हमे यह समझना होगा कि बच्चों का बचपन सबसे महत्वपूर्ण है। बच्चों को अपने बचपन के अनमोल क्षणों को जीने का अवसर देना चाहिए, न कि उन्हें सोशल मीडिया के झूठे आकर्षणों में उलझा देना चाहिए। मैं एक माँ के रूप में नहीं चाहती कि मेरा बच्चा सोशल मीडिया के इस दबाव के कारण अपना बचपन खो दे।

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