Wednesday, July 2, 2025
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बचपन में बॉडी शेमिंग बनती है ताउम्र का दर्द: 7 महिलाओं की कहानी

बचपन वह समय होता है जब हम अपने व्यक्तित्व का निर्माण कर रहे होते हैं। यही वह दौर होता है जब छोटी-छोटी बातें हमारी आत्मसम्मान और आत्मविश्वास पर गहरी छाप छोड़ सकती हैं। लेकिन जब बचपन में ही बॉडी शेमिंग जैसी नकारात्मक चीजें होती हैं, तो यह न केवल उस समय दर्द देती है, बल्कि पूरी जिंदगी के लिए एक गहरी चोट बन जाती है। इस लेख में, हम 7 महिलाओं की कहानियां साझा कर रहे हैं, जिन्होंने बचपन में बॉडी शेमिंग का सामना किया और यह उनके जीवन पर कैसे असर डालती रही।

1. अदिति, 29 वर्ष

“बचपन में मेरी लंबाई दूसरों की तुलना में कम थी। लोग मुझे ‘बौनी’ और ‘छोटू’ कहकर चिढ़ाते थे। मुझे लगता था कि मैं कभी भी किसी की पसंद नहीं बन पाऊंगी। आज भी, जब कोई मेरी हाइट पर मजाक करता है, तो मैं असहज महसूस करती हूं। बचपन की वह चुभन आज भी मेरे दिल में है।”

2. नेहा, 34 वर्ष

“मेरे मोटापे की वजह से मुझे हमेशा ‘मोटी’ या ‘हाथी’ कहा गया। स्कूल के दोस्त, रिश्तेदार—सबका रवैया एक जैसा था। यह सब सुन-सुनकर मैंने खाना कम कर दिया और 16 साल की उम्र में एनोरेक्सिया का शिकार हो गई। आज मैं स्वस्थ हूं, लेकिन वह मानसिक घाव कभी नहीं भर पाए।”

3. सुमन, 31 वर्ष

“मेरे गहरे रंग के कारण लोग मुझे ‘काली’ और ‘काजल’ कहकर बुलाते थे। मेरी मां तक से कहा जाता था कि मेरी शादी मुश्किल होगी। इन सब बातों ने मेरे आत्मसम्मान को तोड़ दिया। आज, मैं खुद से प्यार करना सीख रही हूं, लेकिन यह सफर आसान नहीं है।”

4. पूजा, 27 वर्ष

“मुझे अपने पतले शरीर के कारण चिढ़ाया गया। लोग कहते थे कि ‘हड्डियों का ढांचा’ या ‘खाली फांके’। उस समय मैं अपनी कद-काठी से बहुत असंतुष्ट थी। आज भी, मेरे कपड़ों को लेकर मैं बहुत सतर्क रहती हूं, क्योंकि बचपन की वह छवि मेरे दिमाग में बैठ गई है।”

5. श्रुति, 30 वर्ष

“मेरा चेहरा गोल था और लोग मजाक में मुझे ‘लड्डू’ बुलाते थे। मुझे तब यह समझ नहीं आता था कि ऐसा क्यों हो रहा है। लेकिन जब बड़े होने पर मैंने यह महसूस किया कि ये बातें मुझे भीतर से कमजोर बना चुकी थीं। आज भी मेरी तस्वीर खींचते वक्त मुझे लगता है कि मैं ‘अच्छी’ नहीं दिखती।”

6. रिया, 28 वर्ष

“मुझे हमेशा मेरे बालों की बनावट और रंग के कारण चिढ़ाया गया। लोग कहते थे कि मेरे बाल ‘झाड़ू’ जैसे हैं। मैंने बालों को लेकर इतने सालों तक खुद को नीचा महसूस किया कि अब भी कोई मेरे बालों पर टिप्पणी करता है तो मैं असहज हो जाती हूं।”

7. अनुष्का, 32 वर्ष

“मेरे दांत टेढ़े-मेढ़े थे और लोग मुझे ‘मकड़ी’ या ‘ड्रैकुला’ बुलाते थे। मैंने बचपन से दर्पण देखना कम कर दिया था। बड़े होने के बाद मैंने ब्रेसेस लगवाए, लेकिन आत्मविश्वास की कमी आज भी मेरे साथ है।”

बचपन की बॉडी शेमिंग का प्रभाव

बॉडी शेमिंग के कारण बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। यह न केवल उनके आत्मसम्मान को कम करता है, बल्कि उनके मानसिक विकास को भी बाधित कर सकता है। समय रहते इस मुद्दे को गंभीरता से लेना और बच्चों को बिना शर्त प्यार और स्वीकार्यता देना जरूरी है।

समाज की भूमिका

समाज को यह समझने की जरूरत है कि हर व्यक्ति की कद-काठी, रंग-रूप, और अन्य विशेषताएं अलग होती हैं। बच्चों को यह सिखाया जाना चाहिए कि हर शरीर सुंदर है और किसी को उनके शारीरिक रूप के आधार पर जज करना गलत है।

निष्कर्ष
बचपन में मिली बॉडी शेमिंग की चोटें ताउम्र याद रहती हैं, लेकिन इनसे बाहर निकलना और खुद से प्यार करना संभव है। हमें न केवल बच्चों को इस दर्द से बचाना चाहिए, बल्कि उन्हें आत्मस्वीकृति और आत्मसम्मान के महत्व को समझाना चाहिए।

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