यौन शोषण एक गंभीर समस्या है जो बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को न केवल प्रभावित करती है, बल्कि उन्हें जीवन भर के लिए कई मानसिक समस्याओं का सामना भी कराती है। यौन शोषण का शिकार होने वाले बच्चों पर सबसे बड़ा मानसिक दबाव यह होता है कि उन्हें अक्सर चुप रहने के लिए कहा जाता है, और उनके मन में यह डर बैठाया जाता है कि अगर वे किसी से यह बात कहेंगे तो उन्हें दंड मिलेगा या फिर कोई और समस्या उत्पन्न होगी।
कई बार बच्चों को यह बताया जाता है कि “किसी को मत बताना,” जो कि उनके लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता है। यह शब्द उन बच्चों के लिए जहर के समान होते हैं जो पहले से ही अपनी नाबालिग अवस्था में असहाय होते हैं और जो अपनी स्थिति को समझ नहीं पाते। यह स्थिति उन बच्चों के आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को बहुत चोट पहुंचाती है, और यह उन्हें अपने भीतर के आघात और डर को एकतरफ रखकर चुप रहने के लिए मजबूर करती है।
बच्चों पर इसके प्रभाव
यौन शोषण का शिकार बच्चे अक्सर खुद को दोषी मानने लगते हैं, और यह विचार उनके मन में घर कर जाता है कि अगर उन्होंने शोषण की घटना को किसी से साझा किया तो वे दोषी ठहराए जाएंगे। इस डर से बच्चे अपनी पीड़ा को अंदर ही अंदर छुपा लेते हैं। “किसी को मत बताना” जैसे वाक्य उनके आत्मविश्वास को तोड़ते हैं और यह उन्हें और भी ज़्यादा मानसिक रूप से परेशान करते हैं।
समाज का दृष्टिकोण
जब बच्चों से इस तरह की घटनाओं को चुप रहने के लिए कहा जाता है, तो यह भी समाज की मानसिकता को दर्शाता है। हमारा समाज अक्सर यौन शोषण जैसे मामलों को शर्म के साथ जोड़ता है, और बच्चों को यह सिखाया जाता है कि ऐसी घटनाओं को सार्वजनिक रूप से नहीं बताया जाना चाहिए। यह गलत धारणा बच्चों को और भी घुटन और अकेलापन महसूस कराती है।
चुप रहने का नुकसान
बच्चों को यौन शोषण के बारे में बताने में डर या शर्म महसूस होना सामान्य नहीं होना चाहिए। अगर किसी बच्चे को शोषण के बारे में बात करने के लिए स्वतंत्रता और समर्थन मिलता है, तो उन्हें मानसिक रूप से स्वस्थ रहने में मदद मिलती है। चुप रहने का मतलब है कि बच्चों को किसी मानसिक या शारीरिक उपचार का अवसर नहीं मिल पाता, और इसका परिणाम यह हो सकता है कि वे अपना जीवन भर की तकलीफों को अपनी ज़िंदगी में ले कर चलें।
बच्चों के लिए जरूरी है संवाद
यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम बच्चों को यह सिखाएं कि वे अपनी भावनाओं और परेशानियों को खुले तौर पर साझा कर सकते हैं। समाज को यह समझने की जरूरत है कि यौन शोषण किसी भी रूप में गलत है और बच्चे इसे छुपाने के बजाय इसके खिलाफ आवाज उठाएं। इसके लिए बच्चों को यौन शिक्षा, आत्मरक्षा, और मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों की आवश्यकता है। परिवार और विद्यालय दोनों को बच्चों के साथ संवाद बनाए रखने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, ताकि वे अपनी समस्याओं को किसी से साझा करने से न डरें।
निष्कर्ष
किसी भी बच्चे को यह नहीं कहना चाहिए कि “किसी को मत बताना”। यह शब्द उनके लिए मानसिक और शारीरिक रूप से घातक हो सकते हैं। बच्चों को सिखाया जाना चाहिए कि उनकी आवाज़ मायने रखती है और वे किसी भी गलत घटना के खिलाफ बोल सकते हैं। उन्हें अपनी सुरक्षा के अधिकार का अहसास होना चाहिए और यह समझाना चाहिए कि उनका आत्मसम्मान सबसे महत्वपूर्ण है। बच्चों को इस दुनिया में सुरक्षा और सम्मान का अनुभव मिलना चाहिए, ताकि वे अपना जीवन आत्मविश्वास के साथ जी सकें।